सर्वोच्च न्यायालय ने जुलाई 2019 में एक ऐतिहासिक कार्य किया। सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर अब निर्णय 9 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हैं। 1950 से 2019 तक, अर्थात लगभग 70 वर्षों तक, सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय केवल एक ही भाषा में जनता को उपलब्ध थे और वह भी अंग्रेजी में। इस ऐतिहासिक कदम ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए सभी निर्णयों को आम जनता तक भारतीय भाषाओं में पहुंचाने की पहल है। लगता है कि 70 वर्षों बाद जैसे भारतीय भाषाओं को सर्वोच्च न्यायालय में प्रवेश मिला हो, जिसमें आज तक अंग्रेजी का ही बोलबाला रहा। इस बात पर किसी की नजर पहले नहीं पड़ी कि जनता को सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय केवल अंग्रेजी में ही परोसे जा रहे हैं। आम जनता जो अंग्रेजी से कोसों दूर है, जिसे अंग्रेजी समझने में असहजता होती है, उसे अंग्रेजी में निर्णय दिए जाते रहे। जबकि संविधान की आठवीं सूची में 22 भारतीय भाषाओं में अंग्रेजी शामिल नहीं है। हालांकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 348 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाही अंग्रेजी भाषा में ही होनी निश्चित की गई है। परंतु इस बात पर पहले ध्यान नहीं गया कि जो लोग अंग्रेजी नहीं समझते, उनको सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय कैसे मालूम पड़ेंगे। उनको सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में दिए गए तर्क या तथ्य विश्लेषण का कैसे मालूम पड़ेगा। जिस देश में अदालत की अंग्रेजी मात्र 6 प्रतिशत से भी कम लोग जानते हैं और जहां अदालत की अंग्रेजी बहुत ही अलग स्तर की है, उसे आम जनता कैसे समझ पायेगी? सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय भारतीय भाषाओं में अनुवादित करके, अपनी वेबसाइट पर डाले हैं। इससे देश का प्रत्येक व्यक्ति अपनी भाषा में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय को पढ़ सकता है। अब वह कई कानूनी विषयों की जानकारी ले सकता है। जैसे कि सर्वोच्च न्यायालय ने मौलिक अधिकारों के विषय में क्या निर्णय दिया; पतिपत्नी के क्या अधिकार हैं; किराएदार- मकान मालिक के क्या अधिकार हैंपुलिस के अत्याचार के खिलाफ कैसे लड़ाई लड़ी जा सकती है; नौकरी पर लगना; रिश्वतखोरी से कैसे निपटा जा सकता है; यह सब अधिकार अभी तक अंग्रेजी भाषा का पर्दा होने के कारण आम जनता की दृष्टि से दूर रहे परंतु अब यह पर्दा हटा दिया गया है और सीधा-सीधा जनता को न्याय, जनता की भाषा में देना प्रारंभ कर दिया है। यह मात्र भारतीय भाषाओं की जीत नहीं है, अपितु यह प्रत्येक नागरिक के अधिकार की जीत है-अपनी बात को, अपने विचारों को, अपनी भाषा में कहने के अधिकार की जीत है।अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार से, प्रत्येक नागरिक स्वच्छंदता से अपने विचार रख सकता है। कोई भी नागरिक उसी भाषा में तो अपने विचार रखेगा, जिसको वह बोल सकता है। प्रत्येक नागरिक वही भाषा सीखता है, बोलता है जो उसे बचपन से, उसके प्रांत में, उसके घर में उसके माता-पिता ने सिखाई। देश के 99 प्रतिशत लोग अपनी प्रांत की राजभाषा को ही अपनी मातृभाषा की तरह प्रयोग करते हैं, उसी में बोलते हैं, लिखते हैं, सुनते हैं। हो सकता है कि कुछ जगहों पर अंग्रेजी भाषा का छुटपुट प्रयोग प्रारंभ हो गया हो, परंतु हमारा देश गांव में बसता है, छोटे-छोटे नगर, तहसीलों में बसता है। हमारे देश के बच्चे आज भी अधिकतर सरकारी स्कूलों में, केंद्रीय विद्यालयों में पढ़ते हैं। इसलिए अपने प्रांत की राजभाषा को समझना प्रत्येक के लिए बहुत ही सहज और सरल है। सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिकों के राजभाषा के प्रति प्रेम और सहजता को ध्यान में रखते हुए ही सर्वोच्च न्यायालय में भारतीय भाषाओं को आज प्रवेश दिया। उसके लिए सर्वोच्च न्यायालय बधाई का पात्र है।लोकतांत्रिक ढांचे में तो यह आवश्यक भी है ।
अदालती फैसले अब जनता की भाषा में
• Jagdish Tiwari